एक बार फिर
मानवीय न्याय
की उसी उम्मीद के साथ भारतवर्ष
विशेष
इतिहास व वर्तमान में विशाल जनमत के निर्मित होने के कारणों एवं उसके
निहितार्थ की तह में जा रहें हैं अनिवार्य प्रश्न के प्रधान संपादक छतिश द्विवेदी
हमारा देश युगों से राजतंत्र एवं दशकों से प्रजातंत्र में भी संपूर्ण मानवीय न्याय को खोजता रहा है। वह जिस रामराज्य की चर्चा करता है एवं जिस राम राज्य के उदाहरण को देता रहा है, वह प्रतीक रुप से मानवीय न्याय के उदाहरण का राज था। यह मानवीय न्याय वह है जो सबको न्यायपूर्ण सुख एवं जीवन जीने में सरलता का प्रबंध समान रूप से करता है। यह सभी पहलुओं से भेद रहित भाईचारे की तस्वीर है। सुनने में यह कुछ दार्शनिक अवश्य है पर यही कभी समाजवाद की तरह दिखता है तो कभी किसी दूसरे अन्य वाद की तरह दिखता है।
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विभिन्न वादों विचारधाराओं एवं जाति-वर्गों में विभाजित जनसाधारण में कभी-कभी किसी विशेष चीज को लेकर व्यापक समानता हो जाती है। कई बार क्षेत्र विशेष और देश विशेष की सीमा भी तोड़ कर जनसाधारण के द्वारा बड़े कीर्तिमान स्थापित हो जाते हैं। हालांकि इस कीर्तिमान के निहितार्थ को जन सामान्य समझ भी नहीं पाता। वर्तमान सत्तारूढ़ दल द्वारा पुनः भारी बहुमत से लौटना या कहें तो आम देशवासी एवं राजनीतिक पंडितों की अपेक्षा से अधिक सफलता के साथ चयनित होना उस दल ही के लिए नहीं अपितु सभी के लिए चमत्कार जैसा है। यकीनन है भी। क्योंकि यह समर्थन उम्मीद से कुछ बड़ा है, और उम्मीद से बड़ी हर चीज चैंकाती है। किंतु आम जन साधारण के द्वारा इस तरह का जनसमर्थन कोई नया नहीं है। हो सकता है वर्तमान पीढ़ी इसे मेरे इस लेख के बाद समझे लेकिन हमारे बुजुर्गों एवं अध्ययन करने वाले लोगों के लिए इसके निहितार्थ समझना सरल है।
राजतंत्र से लेकर वर्तमान भारतीय प्रजातंत्र में जनसाधारण द्वारा इस तरह के अनेक चमत्कार होते रहे हैं। चंद्रगुप्त मौर्य, सम्राट अशोक, अकबर जैसे सम्राटों को भारी आमजन का साथ मिला था, प्रजातंत्र में पंडित जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी एवं बाद के कुछ लोगों को भी बड़ा जनसमर्थन प्राप्त हुआ था ऐसे जनसमर्थन प्राप्त लोगों में भावनापूर्व समर्थित अटल जी भी उल्लेखनीय हैं।
मानवीय न्याय की चाह ऐसे जनसमर्थनों का एकमात्र कारण होती है या आज तक यही एकमात्र कारण रही है। सामाजिक न्याय, नैतिक न्याय, समाजवाद इत्यादि जैसी अनेक शब्द चित्रियों से सजाया गया, राजनीतिज्ञों द्वारा बताया गया, विभिन्न योजनाओं और व्यक्तियों या सेवाओं के रुप में लागू किया गया व आश्वासन दिया गया सिर्फ एक मात्र मानवीय न्याय की चाह होती है।
यह मानवीय न्याय वह है जो सबको न्यायपूर्ण सुख एवं जीवन जीने में सरलता का प्रबंध समान रूप से करता है। यह सभी पहलुओं से भेद रहित भाईचारे की तस्वीर है। सुनने में और समझने में यह कुछ दार्शनिक अवश्य है पर यही कभी समाजवाद की तरह दिखता है तो कभी किसी दूसरे अन्य वाद की तरह दिखता है। पर इसका संबंध सभी के जीवन की सरलता एवं समान रूप से सभी के लिए सार्वभौमिक स्थिर सुखों की स्थापना से है। यह मानवीय न्याय ही है जो आम जनमानस में व्यापक रूप से सदैव चाहा गया है। और यही है जो किसी भी विचारधारा, व्यक्ति या दल से बधने के पश्चात भारी मात्रा में उसे प्राप्त हो जाता है।
इसकी प्राप्ति का दूसरा पहलू यह भी है कि जब आम जनमानस में वर्तमान सक्रिय सत्ता पक्ष से घोर निराशा हो जाती है तब वह मानवीय न्याय के लिए अपनी खोज में कुछ तीव्र हो जाता है। जैसा कि कुछ समय पूर्व कांग्रेस की घोर निराशा जनक प्रशासन एवं सत्ता संचालन से ऊबकर दिल्ली राज्य में अरविंद केजरीवाल की सरकार को व्यापक एवं लगभग संपूर्ण समर्थन प्राप्त हो गया था।
ब्रिटिश सत्ता संचालन से ऊबकर एवं उनकी क्रूरता से मानवता को मरते हुए देखकर भारतीय जनमानस में मानवीय न्याय की खोज बलवती हुई थी। तब जाकर भारत छोड़ो आंदोलन जैसा व्यापक जनान्दोलन शुरू हुआ और ब्रिटिश राज्य का अंत हुआ। इसके पश्चात् पंडित जवाहरलाल नेहरू को लगभग सर्वमत सरीखा समर्थन प्राप्त हुआ लेकिन कांग्रेस ने उस समर्थन को मानवीय न्याय का आधार न समझते हुए अपने लिए लोगों का अंधविश्वास समझ लिया और कालांतर में बहुत सारे विरोधाभास, भ्रष्टाचार के पहलू एवं सत्ता नशा के लक्षण दिखाई दिए।
वर्तमान समय में प्राप्त हुआ जनसमर्थन मानवीय न्याय की अभिलाषा में ही है। वर्तमान प्रधानमंत्री की बहुत सारी योजनाएं जो मानवीय न्याय को स्थापित करती दिखीं उससे आमलोगों में विश्वास की रेखा उभर गई। यह विश्वास वर्तमान प्रधानमंत्री के लिए नहीं है या वर्तमान विजई दल के लिए नहीं है, यह उस दल से लगाई गई उस उम्मीद के लिए है जो पांच साल में कुछ हद तक मानवीय न्याय को लेकर आगे बढ़ती दिखाई दी है। ऐसे में पिछली सरकारों व राजनीतिक दलों की तरह वर्तमान विजयी दल को भी यह भ्रम नहीं होना चाहिए कि आने वाले समय में कुछ योजनाओं व कुछ लोक लुभावनी बातों में उलझा कर वह समाज की उस अभिलाषा से अतिरिक्त कुछ और साधने लगेगा और यही जनसमर्थन उस समय भी उसके साथ बना रहेगा। हमारा देश युगों से राजतंत्र में भी एवं दशकों से प्रजातंत्र में भी संपूर्ण मानवीय न्याय को खोजता रहा है। वह जिस रामराज्य की चर्चा करता है एवं जिस राम राज्य के उदाहरण को देता रहा है, वह रामराज्य किसी भगवान राम का राज्य नहीं था, अपितु प्रतीक रुप से मानवीय न्याय के उदाहरण का राज था। वह समय ऐसा कालखण्ड है जो हर मनुष्य को एक भावना पूर्ण एवं कल्पनीय स्वतंत्रता, उन्मुक्त आनंद का काल है। जो प्रजातांत्रिक सरकारें इन तत्वों से अलग सफर करने लगीं वह आम जन का विश्वास खो दीें। वे चाहे स्वतंत्रता प्राप्ति के अभियान के बाद सत्ता प्राप्त किया दल हो या राजनीतिक परिवर्तन की लड़ाई में उभरा हुआ दल हो।
अतः वर्तमान विजयी दल सिर्फ इतना जान ले कि उसे मानवीय न्याय से जुड़ी सभी योजनाओं पर पूरी प्रतिबद्धता एवं तत्परता से जुटे रहना है।
यही संकल्प उसका आमजन से समर्थन प्राप्त करने की संभावना को प्रशस्त किया है एवं आगे करता रहेगा। हांलाकि नरेंद्र मोदी द्वारा पुनः बहुमत प्राप्त करने के बाद धन्यवाद ज्ञापन में लिए गए तीन संकल्प काफी उम्मीद जगाते हैं। साथ ही उसी वक्तब्य में किए गए जाति वर्णन से बहुत निराशा भी हुई। उन्होंने उसी वक्त दो जातियों का वर्णन करते हुए गरीब वर्ग के साथ अमीर वर्ग का जिक्र नहीं किया। वे अमीर वर्ग को गरीब वर्ग का उत्थान करने वाली जाति बता दिए। हांलाकि मोदी में अच्छे आदर्शों एवं सिद्धांतों को देखते हुए देश उनके साथ प्रेम और विश्वास के मार्ग में आगे बढ़ चला है। वे किसी सामान्य बात को असामान्य तरीके से एवं सामान्य भाव को अलंकृत शब्दावलियों में सजाकर कहने के जादूगर रहे हैं। राष्ट्र को आशा है कि उनकी सामाजिक एवं मानवीय न्याय की योजनाएं विगत पांच साल की तरह ही आगे के वर्षों में ऐसे ही लोगों को चमत्कृत एवं अलंकृत करती रहेंगी।
आज संपूर्ण भारतवर्ष एक बार फिर उसी मानवीय न्याय की उम्मीद के साथ खड़ा हो गया है। शिक्षा, सुरक्षा, जीविका, द्रुतसंचार, भौतिक पर्यावरणीय सुधार, कर राहत एवं भ्रष्टाचार उन्मूलन जैसे अनेक दायित्वों को स्मरण दिलाने के साथ ही साथ वर्तमान विजयी दल को एवं उसके नायक को संपूर्ण भारतवर्ष के साथ हमारी भी शुभकामनाएं।